सोमवार, नवंबर 04, 2019

चंपारण सत्याग्रह में आदिवासी लोहार समुदाय

प्रस्तुतकर्ता: सतीश कु. शर्मा
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"मैं बोधी लोहार, बेटा- परसन लोहार, जात- लोहार, सा. जागापाकड़ वो काश्तकार मौजे मजकूर तपा हरनाटाँर, परगने मझौआ, इलाका थाना गोविंदगंज वो सब रजिस्ट्रार मो. मोतिहारी, जिला चंपारन के हूँ..... हम अपने खेत पर हाजिर होकर जो अहालियान कोठी कहेंगे, तामील करेंगे."
यह नील का सट्टा था, जिसके जरिये अंग्रेजों को चम्पारण के किसानों पर अत्याचार का कागजी हक मिल जाता था. उनकी कहानी सुन 1917 में गांधी जी चम्पारण पहुचे, तो अंग्रेजी हुकूमत को शायद यह अहसास नहीं रहा होगा कि उसकी शासन-सत्ता को निर्णायक चुनौती देने वाला शख्स का अवतार हो चुका हैं. चंपारण की प्रजा नील बोना बिलकुल नापसंद करती थी. सन् 1906 तक नीलवरों और रैयतों का सरोकार जैसा-तैसा चलता गया. सन् 1907 के शुरू होते ही बेतिया इलाके में अशांति के चिन्ह देखने में आए.

सन् 1907 के मार्च में चंद किसानों ने मोतिहारी मजिस्ट्रेट के इजलास में एक दरखास्त दी, जिसमें और बातों के सिवाय यह भी लिखा था- "छह या सात साल से साठी कोठी रैयतों को तरह-तरह से तंग कर रही है. वह हम लोगों से अधिक मालगुजारी ले रही है और बेगार का काम करवाती है, जबरदस्ती नील बोवाती हैं और उसका पूरा दाम नहीं देती और हम लोगों के विरोध झूठा फौजदारी का मुकदमा लाकर नील बोने का सट्टा लिखने के लिए हम को बाध्य करती है." जब साठी कोठी के मैनेजर ने देखा कि नील की खेती पहले जैसा नही हो सकती तो कई को लालच में फसाया और कई पर झूठा आरोप लगा कर दबाव बनाया लेकिन अशांति न रुकी.

तारीख 14 अगस्त, सन् 1907 को कोठी के रैयतों ने एक दरख्वास्त चंपारण के कलक्टर के पास भेजे, जिसमे उन्होंने अपने दुःख की कहानी सुनाई थी और अंत में उन्होंने जांच के लिए प्राथना की. इस दरख्वास्त पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कड़ी जांच के लिए हुक्म दिया लेकिन जांच संतोषजनक नही हुआ क्योंकि छोटे लाट के पास एक मेमोरियल भेजा गया था, जिसमे जांच के संबंध में तीन ही मौजे में जांच हुई और फिर जांच पूरी किए बिना ही चले जाने की बात कही गई. अशांति ज्यों-की-त्यों बानी रही, बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ती ही गई.

नवंबर महीने के आरंभ में लौरिया थाने के दारोगा ने बेतिया के मजिस्ट्रेट के पास एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें लिखा था कि चंद रैयत दूसरों को नील बोन से मना करते हैं और मालगुजारी देने से भी रोकते हैं, इसलिए उनपर 107 धारा के अनुसार कार्रवाई की जाए. मजिस्ट्रेट ने चंद रैयत से शांति रखने के लिए मुचलका लिया. बेचारे रैयत इन काररवायों से परेशान हो गए. कितने जेल गए, कितनों से मुचलका लिया गया और कितने को डंडापेटी दी गई (स्पेशल कांस्टेबिल मुकर्रर किए गए). इस संबंध में जो मेमोरियल छोटी लाट को दिया गया, उसका भी कोई संतोषजनक फ़ल नहीं हुआ. किंतु इतने दुखों को झेलने पर भी रैयत नील बोने पर राजी नहीं हुए. अंत में साठी कोठी को नील पैदा करना बंद करना पड़ा और रैयतों के सिर से एक भारी बोझ हटा.

पर, कोठी चुप कब बैठ सकती थी? उसने एक दूसरा ही रास्ता रैयतों से रुपया वसूल करने का निकाला, जिससे नील का घाटा पूरा हो जाय. आगे भी ऐसे कई तरह के खर्च किसानों के ऊपर लगाए गए, जुरमाने लगाए गए, झूठे मुकदमे चलाये गए, जेल भेजे गए. सीधी-सादी भोली-भाली चंपारण की प्रजा पर अन्याय और अत्याचार बढ़ती गई. कई शिकायतें हुई, कई जांच हुए, सब के सब असंतोषजनक निकले. अन्याय और अत्याचार सहने की सीमा घटता गया तथा विरोध और आंदोलन के रूप रेखा बढ़ता गया. किसानों के बुलाहट पर 15 अप्रैल, 1917 को महात्मा गांधी जी का चंपारण में आगमन हुआ. अंग्रेजों द्वारा चम्पारण के किसानों पर अत्याचार का सबूत जुटाए गए, हजारों-हजारों की संख्या में किसानों का सहयोग मिला, जिसमें आदिवासी लोहार समुदाय भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिये, जिसमे से कुछ का नाम इस प्रकार है- बाबा बोधी लोहार, बुटाई लोहार, देवदत्त ठाकुर लोहार, रामकिशुन लोहार, महावीर लोहार, अकलू लोहार, मियन्ना लोहार, महादेव लोहार, लंगट लोहार, चिंतामन लोहार, जयपाल लोहार, धनेशर लोहार, सुखल लोहार, शिवगुलाम लोहार, लखन लोहार, भिखार लोहार, रामध्यान लोहार, गजाधर लोहार, सुग्रीम लोहार, रामअधीन लोहार, गुरुदयाल लोहार, कलन लोहार, धरीच्छन लोहार, पतिराम लोहार, राम प्रसाद लोहार, गोविंद लोहार, निर्मल लोहार, नथुनी लोहार, पशुपत लोहार, फिरंगी लोहार, भगनू लोहार एवं कई और आदिवासी लोहार समुदाय के लोग भी शामिल रहें.

महात्मा गांधी जी
करीब साल भर तक गांधी जी चंपारण के इलाकों में घूमते रह रहे, जनमानस पूरी तरह उनके साथ था. गांधीजी के चंपारण पहुंचने की खबर देश भर में फैल चुकी थी. शासन पर भी दबाव था. आखिरकार मार्च 1918 में चंपारण एग्रेरियन एक्ट पारित हुआ और रैयतों का बोध काम हुआ. गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था. इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है. यही सत्याग्रह गांधी जी के अगले सत्याग्रहों और आजादी की लड़ाई के लिए आधार बना. चंपारण की घटना का एक अत्यंत विस्तृत और विराट रूप देश में महान आंदोलन का रूप लिया.

संग्रहकर्ता - सतीश कुमार शर्मा, पूर्वी चंपारण
- रामा शंकर शर्मा (ST RSS), रोहतास (राष्ट्रीय महासचिव - राष्ट्रीय शिल्पकार महासंघ, प्रदेश सचिव - लोहार विकास मंच, बिहार प्रदेश)

References -
1. चंपारण से अंग्रेजी राज को गांधी ने दी थी चुनौती (2012) - रजी अहमद, निर्देशक - गांधी संग्रहालय, पटना
2. 'चंपारण में महात्मा गांधी' नामक ग्रंथ - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति)
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चंपारण सत्याग्रह की सम्पूर्ण कहानी एक छोटी सी आर्टिकल में लिखना संभव नहीं हैं. इस आर्टिकल में आदिवासी लोहार समुदाय के सिर्फ उन ही आंदोलनकारियों का नाम हैं जिनका उपनाम लोहार हैं. चंपारण में उपनाम लोहार के अलावे अधिकांश लोग ठाकुर, शर्मा, मिस्री टाईटल रखते हैं, लेकिन यह टाईटल अन्य वर्ग के लोग भी रखते हैं.

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